अतुल सुभाष मोदी की ये कहानी आपको रूला देगी :-कहते हैं कि मरने से पहले कोई इंसान झूठ नहीं बोलता, क्योंकि उसे ईश्वर के पास जाना होता है। उसे पता होता है कि वह मरने वाला है, इसलिए उसके मुंह से जो बोल निकल रहे हैं, वो सच होते हैं।
दरअसल, विधि की अगर बात मानें, या कानून की भाषा कहें, तो मरने से पहले कोई व्यक्ति यदि किसी जज या मजिस्ट्रेट के सामने अपने बयान दे जाए, तो वाकई वह सच बोल रहा होता है। ऐसा कानून भी मान लेता है। लेकिन उसका पुलिस और कानून से पूरी तरह से विश्वास उठ चुका था। इसलिए उसने यह कदम उठाया।
वह कहता है, “मैं जो पैसे कमाता हूं, उस पैसे से मेरे दुश्मन मजबूत हो रहे हैं। मेरे पिता, मेरी मां, मेरे भाई—यह रोज़ तिल-तिल मरते हैं। इसलिए अब मैं यहां जीना नहीं चाहता।”
कुछ ऐसी बात वह कह देता है। साथ ही वह यह भी कहता है, “जो मेरी लाश हो, उस लाश को मेरी पत्नी से बहुत दूर रखना। उसे पास भी मत फटकने देना।”
इसके साथ ही वह कहता है, “मेरी अस्थियों को तब तक विसर्जित न किया जाए, जब तक इंसाफ न मिल जाए। यदि इंसाफ न मिले, तो फिर मेरी उन अस्थियों को जिस अदालत के सामने केस की सुनवाई चल रही है, उसी अदालत के ठीक सामने जो गटर होगा, उसी गटर में विसर्जित कर देना, बहा देना।”
लेकिन एक बात आखिरी में वह कहता है, “मेरे बच्चे को मेरे पिता और मेरी मां को सौंप देना, क्योंकि मेरी पत्नी सक्षम नहीं है उसकी परवरिश करने के लिए।”
उसने यह बात कही थी। और जब यह बात कही थी, तो यह बात भारत के हर हिस्से में सोशल मीडिया पर वायरल हो गई। ऐसा कौन सा व्यक्ति होगा जिसने यह बात पूरी तरह से सुनी नहीं होगी। जिसने भी यह बातें सुनी, उसकी आंखों में आंसू आ गए। वह सोचने पर मजबूर हो गया।
इसके बाद, चाहे वह सोशल मीडिया के अलग-अलग हैंडल्स हों, हर जगह यह वायरल हो गया।आज की जो सच्ची घटना मैं आपको सुनाने जा रहा हूं, यह घटना 9 दिसंबर 2024 की सुबह 6:00 बजे से शुरू होती है। दरअसल, बेंगलुरु पुलिस कंट्रोल रूम को एक फोन पहुंचता है। उसमें बताया जाता है कि एक एआई इंजीनियर, जो इस दुनिया में नहीं रहा, उसने अपनी जान दे दी है।
जैसे ही यह सूचना मिलती है, पुलिस तत्काल प्रभाव से मौके पर पहुंचती है। वहां जाकर देखती है कि मंजूनाथ लेआउट स्थित डेल्फिनियम रेजिडेंसी में उसका एक कमरा होता है।
वहां जब पुलिस पहुंचती है, तो सैकड़ों की संख्या में लोग पहले से ही मौजूद थे। तत्काल प्रभाव से उसके शव को कब्जे में लिया जाता है और पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया जाता है।अब पुलिस यह पता करने की कोशिश कर रही थी कि आखिर यह मरने वाला कौन है।
दरअसल, उसका नाम अतुल सुभाष मोदी था। वह बेंगलुरु में रहकर इंजीनियरिंग की नौकरी कर रहा था और वहीं से अपने घर-परिवार को पैसे भेजता था।
लेकिन जब पुलिस ने जांच-पड़ताल शुरू की कि आखिर उसने यह कदम क्यों उठाया, तो पता चला कि उसने 84 मिनट का एक वीडियो और 24 पन्नों का पत्र छोड़ा है। इन माध्यमों से पूरी कहानी बयां की गई थी।उसके छोटे-छोटे हिस्से सोशल मीडिया पर बहुत तेजी से वायरल हो गए। ऐसा कोई इंसान नहीं था, जिसके पास यह बात पहुंची नहीं हो।
भारत के हर हिस्से में, हर जगह यह कहानी पहुंच गई। चाहे वह पॉलिटिशियन हों, राजनेता हों, जज हों, पुलिस हों, या आम आदमी। हर किसी के पास यह बात पहुंच रही थी।
सोशल मीडिया पर #JusticeForAtulSubhash ट्रेंड करने लगा।
यह कहानी शुरू होती है बिहार के समस्तीपुर जिले के बैनी पूसा रोड से।
अतुल सुभाष मोदी वहीं का रहने वाला था। 2019 में उसे एक मैट्रिमोनियल साइट पर एक लड़की दिखाई दी। उस लड़की का नाम निकिता सिंघानिया था, जो जौनपुर, उत्तर प्रदेश की रहने वाली थी।निकिता पढ़ी-लिखी लड़की थी।
वहां बहुत ज्यादा स्पेस भी नहीं होता, लेकिन फिर भी मां साथ में रहती है। इसी बीच में एक नौकरानी आती है, जो घर में खाना बनाने के लिए आती है। एक और नौकरानी साफ-सफाई वगैरह करने के लिए आती है। जिंदगी बेहतरीन चल रही थी। इसी बीच में बच्चा भी पैदा हो जाता है। इसी दौरान परिवार के लोगों की एंट्री भी हो जाती है। लेकिन घर में जगह कम होने के कारण परिवार के लोगों को एक होटल में ठहराया जाता है।
यहीं से स्थिति बिगड़नी शुरू हो जाती है। लड़की के परिवार वालों को लगता है कि, “हम लोगों के लिए इतनी भी जगह नहीं है कि हमें होटल में रखा गया। इससे अच्छा तो हमारा घर है।” इस तरह की बातें होने लगती हैं।
जब संबंध बहुत अच्छे चल रहे थे, तब बताया जाता है कि लगभग ₹ लाख की रकम लड़की ने अपने परिवार वालों को यानी अपनी मां और भाई को दिलवा दी थी। पैसे जाने के बाद छोटी-छोटी बातों पर तकरार होना शुरू हो गया। जब नौकरी चली जाती है, तो मां और बेटी के बीच छोटी-छोटी बातें होने लगती थीं। उधर, मां बैठकर सीरियल देखती, और इधर बेटी का पति से कम्युनिकेशन कम होने लगता।
किसी ना किसी बात पर विवाद होता, कभी सास को लेकर, तो कभी खुद को लेकर। इन झगड़ों के बीच, साल 2021 में वह वहां से चली जाती है। हालांकि, वह प्रेग्नेंट थी और बाद में एक बेटा भी हो जाता है। लेकिन अपनी जिंदगी को ठीक करने के बजाय वह अपने बेटे पर भी ध्यान नहीं देती।
इस दौरान यह बात सामने आती है कि लड़के की मां पूरी तरह शाकाहारी हैं, जबकि लड़के की पत्नी मांसाहारी है। पत्नी घर में ऐसी चीजें खाती थी, जिससे मां को ऐतराज होता था। यही छोटी-मोटी लड़ाई की वजह बन जाती है और अंततः अलगाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
अलग होने के बाद, 24 अप्रैल 2022 को वह जौनपुर की सदर कोतवाली में जाती है। वहां मुकदमा अपराध संख्या 115/2022 आईपीसी की धारा 498ए, 323, 504, 506 और दहेज प्रतिषेध अधिनियम की धारा 3 व 4 के तहत मुकदमा दर्ज कराती है। यह पहला मुकदमा था, जो लड़के अतुल, उसके पिता, मां और भाई के खिलाफ दर्ज हुआ।
इसके बाद मुकदमों की झड़ी लग जाती है। हत्या के आरोप भी लगाए जाते हैं। लड़की ने आरोप लगाया कि, “मेरे पिता की मौत मेरे पति के उत्पीड़न की वजह से हुई।” इसी पर भी मुकदमा हुआ। साथ ही, लड़की ने दावा किया कि दहेज के लिए उसे प्रताड़ित किया गया, अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने की कोशिश की गई, और घरेलू हिंसा की गई।
कुल मिलाकर, नौ एफआईआर दर्ज हो चुकी थीं।
लड़का 1827 किमी का सफर तय करके बेंगलुरु से जौनपुर आता-जाता रहा। जब भी अदालत में पेशी होती, कभी जज छुट्टी पर होते, कभी लड़की नहीं आती, तो कभी हड़ताल हो जाती। यह सिलसिला चलता रहा।
2024 में, केस सुनवाई के दौरान, जज से उसने कहा, “मैडम, एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक, झूठे मुकदमों की वजह से बड़ी संख्या में पति आत्महत्या कर लेते हैं।” इस पर पत्नी ने ताना मारा, “तो तुम क्यों पीछे हो? तुम भी क्यों नहीं दे देते जान?”
जज साहिबा ने यह सुनकर हंस दिया, बजाय समझाने के।
परेशानी बढ़ती गई। 2024 में, कोर्ट ने आदेश दिया कि वह अपने बेटे के पालन-पोषण के लिए हर महीने ₹20,000 दे। इसके अलावा, पत्नी और सास के बयान और चैट वायरल होने लगे।आखिरकार, 8 दिसंबर 2024 की रात उसने अपनी जिंदगी खत्म कर ली।
9 दिसंबर 2024 को, जब यह खबर वायरल हुई, तो लड़के के भाई विकास मोदी ने बेंगलुरु पुलिस स्टेशन में पत्नी निकिता सिंघानिया, सास निशा सिंघानिया, और अन्य पर एफआईआर दर्ज कराई।
हर किसी के मोबाइल में पूरी कहानी वायरल होनी शुरू हो जाती है। अब यहां से पत्रकारों का एक जमघट जाता है। दो-चार पत्रकार सीधे जौनपुर के उस रोहटा इलाके में पहुंच जाते हैं। जाकर वहां बातचीत करने की कोशिश कर रहे थे। इसी बीच में पत्रकारों की, यानी 11 दिसंबर 2024 का यह वाक्य है।
जैसे घंटी बजाई जाती है, आवाज लगाई जाती है, लेकिन ना कोई घंटी पर आता है, ना ही कोई आवाज पर आता है। लेकिन इसी बीच में जब पत्रकारों ने कैमरा चलाना शुरू किया, तो लड़का, यानी कि जो साला होता है, और साथ ही जो अतुल की सास होती है, वो बालकनी से झांकते हुए उन्हें डांटते-डपटते हैं कि इस तरह की वीडियो बनाने की कोशिश मत करना। यदि तुमने इस तरह की बात करने की कोशिश की, तो अंजाम ठीक नहीं होगा, अच्छा नहीं होगा।
इनकी सीधे-सीधे धमकी पूरे देशभर में एक कहानी चल रही है। लोग आवाज उठा रहे हैं कि अतुल को न्याय मिलना चाहिए। इसके बावजूद भी उन लोगों की हिम्मत तो देखिए कि मीडिया वालों को पूरी तरह से धमकाने की कोशिश कर रहे हैं। तब जाकर लोगों ने एक तरह से ट्रेंड शुरू कर दिया और इसमें आवाज उठानी शुरू कर दी कि इस लड़के को, यानी कि अतुल को, हर हाल में इंसाफ मिलना ही चाहिए।
उसकी जो कहानी वायरल होती है, जब वो कहता है कि, “मैं जो पैसे कमाता हूं, मेरे पैसे कमाने से मेरे ही दुश्मन मजबूत हो रहे हैं। इसलिए मैं अब ये सब कुछ छोड़ के जा रहा हूं ताकि मेरे परिवार के, मेरे पिता, मेरी मां, ये सब कोई भी परेशान ना हो।” साथ ही वो यहां तक भी कहता है कि जज को भी इसमें कठोर कार्रवाई होनी चाहिए, सजा मिलनी चाहिए। पत्नी का भी नाम लेता है, साथ ही वो अपने साले का नाम लेता है, अपनी सास का भी नाम लेता है।
आगे, जो उसने वीडियो में बोला है, जो उसने पत्र में लिखा है, इस पत्र के कितने मायने होंगे, कितने नहीं होंगे, ये सवाल आज उठ रहे हैं। जितनी आज आवाज उठ रही है, क्या वाकई इस आवाज पर लोग, जज, या कोई कोर्ट पसीज सकता है? क्या वाकई में इन्हें इंसाफ मिल सकता है या नहीं मिल सकता है? यह तो भविष्य के गर्भ में छिपा है।
लेकिन उस लड़के ने जो जाते-जाते कहा, वो वाकई सबको भावुक कर गया। उसकी जो कुछ अपीलें थीं, वो अपीलें वाकई यही कहती हैं कि, “मैं तो अतुल के साथ हूं।” क्योंकि अतुल ने जो कहा है, कि उसका जो बेटा है, वो उसके माता-पिता को मिल जाना चाहिए। उसकी पत्नी शायद सक्षम नहीं है।
इतनी बड़ी बात एक पढ़ा-लिखा आदमी, एआई इंजीनियर, जो इस तरह की बातें कर रहा है, जो मरने से पहले ये अपनी बातें बता रहा है, वो सच ही बोल रहा होगा। क्योंकि वो ईश्वर के पास जा रहा था। इसलिए, ईश्वर के पास जो जाते हैं, वो झूठ नहीं बोलते।
दोस्तों, इस पूरे घटनाक्रम को सुनाने का उद्देश्य किसी को परेशान करना नहीं है, किसी का दिल दुखाना नहीं है। बल्कि आपको जागरूक करना है, आपको सचेत करना है। इस घटना ने पूरे हिंदुस्तान को हिला कर रख दिया। साथ ही कई तरह के मैसेज भी देकर गई है कि जब कोई इस तरह की घटना होती है, तो पुलिस प्रशासन की जिम्मेदारी बनती है कि एक-एक चीज को बारीकी से परखें। दोनों पक्षों को बिठाकर जानने की कोशिश करें कि कौन सच बोल रहा है और कौन झूठ।
उसके टूटने का कारण पहली एफआईआर भी हो सकता है। जब एफआईआर दर्ज होती है, एफआईआर की कॉपी जब हमें भी मिलती है, तो हम देखते हैं कि उस एफआईआर कॉपी में इतनी सटीक भाषा लिखी हुई है, जिससे कोई बचने की कोशिश भी करे, तो शायद आसान नहीं होगा। इसलिए किसी बहुत जानकार व्यक्ति ने ये रास्ते दिखाए होंगे। यही कारण है कि एक के बाद एक, नौ मुकदमे उसके खिलाफ दर्ज होते चले गए और वो लगातार टूटता चला गया।
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