Serial Killer : 14 नवंबर की बात, गुजरात में सूरत के करीब एक जिला है वलसाड, और इसी वलसाड जिले के अंदर एक रेलवे स्टेशन। इस रेलवे स्टेशन का नाम है उदवाड़ा।
शाम का वक्त था, तारीख 14 नवंबर। एक सेकंड ईयर की छात्रा, 19 साल की एक लड़की, ट्यूशन खत्म करने के बाद अपने घर लौट रही थी। इत्तफाक से, जो ट्यूशन सेंटर था, वहां से उसके घर तक जाने के लिए रेलवे ट्रैक को पार करना होता था और एक रेलवे फाटक को भी। उदवाड़ा रेलवे स्टेशन के करीब ही उसका घर था, मुश्किल से दोहज़ार मीटर दूर।
अक्सर वही रूट होता, वह ट्यूशन से निकलती, रेलवे ट्रैक क्रॉस करती और फिर रेलवे फाटक से गुजरकर अपने घर पहुंचती। लेकिन स्टेशन से सौ मीटर दूर का एक हिस्सा ऐसा था, एक क्षेत्र जहां थोड़ा सा नाटा होता और पेड़ बड़े हुए थे।
14 नवंबर की शाम भी, वह लड़की कोचिंग सेंटर से निकलकर अपने घर जा रही थी। लेकिन समय बीत गया, वह घर नहीं पहुंची। अब रूटीन था कि वह इतने समय तक घर आ जाती थी। पंद्रह मिनट, आधा घंटा, एक घंटा ऊपर नीचे। लेकिन दो-तीन घंटे हो गए और वह लड़की घर नहीं पहुंची।
घरवालों को फिक्र हुई। पर उन्हें यह भी पता था कि लड़की के घर से कोचिंग सेंटर तक का रूट क्या है। वह किस रूट से आती-जाती है। पूरा घर, अब घर से निकल पड़ा और उस रूट को फॉलो करते हुए, जिस रूट से वह कोचिंग सेंटर से आती-जाती थी।
अब, उस रूट पर एक-एक आदमी, एक-एक चीज को ढूंढते हुए, देखते हुए आगे बढ़ रहे थे।जैसे ही वे उदवाड़ा रेलवे स्टेशन से सौ मीटर पहले पहुंचे, रेलवे ट्रैक के किनारे एक सुनसान जगह पर, उन्हें एक लड़की जमीन पर लेटी नजर आई। पास जाकर देखा, तो वह उनकी अपनी बेटी थी।
जिस तरीके से वह लाश जमीन पर थी, क्योंकि वह तब तक मर चुकी थी, पहली नजर में देखकर यह साफ हो चुका था कि उसके साथ जबरदस्ती की गई थी। क्योंकि उसके कपड़े शरीर पर नहीं थे। लड़की दम तोड़ चुकी थी। देखकर घरवाले बवास, चीखने-चिल्लाने लगे।तब तक आसपास में गुजर रहे लोग पहुंचे। रेलवे पुलिस फोर्स पहुंची।
इसके बाद, पुलिस को खबर दी गई। पुलिस मौके पर पहुंची। पुलिस ने आकर तहकीकात करनी शुरू की। लाश के पास से उस लड़की का बैग मिला, जिसमें किताबें थीं। साथ में, करीब दो और चीजें मिलीं – एक सफेद स्वेटशर्ट और एक बैकपैक, जिसे पीठ पर बांधते हैं।
घरवालों ने बताया कि वह सफेद स्वेटशर्ट और बैग उस लड़की का नहीं था। अब, पुलिस वालों ने उस बैग को खोलना शुरू किया। जब बैग खोला गया, तो उसमें तीन जर्सी, दो हाफ पैंट और एक मोबाइल चार्जर मिला।
इन कपड़ों को देखकर और इस बैग को देखकर, यह अंदाजा लगाना बड़ा आसान हो गया कि जिसका भी बैग है, या जो भी यह कातिल और रेपिस्ट है, वह इस शहर का नहीं है।क्योंकि वह सफर कर रहा था और ट्रेन से आया था।अब, इसी के फौरन बाद, पुलिस ने उदवाड़ा रेलवे स्टेशन की तरफ एक टीम भेजी।
उन्होंने कहा, “वहां के सीसीटीवी कैमरे चेक करो, वहां कुछ न कुछ दिख जाएगा।”लेकिन पहला झटका तब लगा, जब पता चला कि उस उदवाड़ा रेलवे स्टेशन पर एक भी सीसीटीवी कैमरा लगा ही नहीं है। अब पुलिस को बड़ी मायूसी हुई।
लेकिन उस बैग और कपड़ों को देखकर, यह साफ लग रहा था कि वह एक मुसाफिर है, जो सफर पर निकला है। अब सीसीटीवी कैमरा है नहीं, पुलिस क्या करे? इधर लाश को उठाकर पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया गया, सूरत के जिला अस्पताल में। वहां से रिपोर्ट आई। पता चला कि मौत से पहले या कत्ल से पहले, उसके साथ जबरदस्ती की गई थी। अब पुलिस इधर कातिल की तलाश में।
सीसीटीवी कैमरा है नहीं। एक बैकपैक और एक स्वेटशर्ट के जरिए, कातिल तक पहुंचना है। काम इतना आसान नहीं था। तभी, पुलिस ने तय किया कि चलो, इस स्टेशन पर सीसीटीवी कैमरा नहीं है, इसके आगे-पीछे के स्टेशनों को खंगालते हैं।
आनन-फानन में, पुलिस की कई टीमें लगाईं गईं। यह हुआ कि उस उदवाड़ा रेलवे स्टेशन से पहले के और उसके बाद के स्टेशनों ,पर सीसीटीवी कैमरा चेक किया जाए।कोशिश रंग लाई। उदवाड़ा स्टेशन से एक स्टेशन पहले, उस स्टेशन पर सीसीटीवी कैमरा लगा हुआ था।
जब उस कैमरे को चेक किया गया और टाइमिंग देखी गई, तो एक शख्स कैमरे में नजर आया। अब वह शख्स, उसका चेहरा तो पुलिस को मालूम नहीं था। लेकिन उस तस्वीर को देखकर, पुलिस इसलिए चौंकी क्योंकि उसने वही सफेद स्वेटशर्ट पहन रखी थी और उसके पीठ पर वही बैकपैक था।
काले रंग का बैकपैक।अब, स्टेशन की दूरी – एक स्टेशन पहले और एक स्टेशन बाद। और वह वही शर्ट पहने था। वही बैग उसके कंधे पर था। तो बड़ा आसान हो गया यह पता करना कि यही वह शख्स है। क्योंकि वही चीजें पहने हुए था, जो बरामद हुई थीं।
अब पुलिस ने कहा, “अब इसको ढूंढते हैं।”अब, ढूंढना शुरू किया गया।बाकी स्टेशन की रेलवे पुलिस को खबर दी गई।गुजरात पुलिस ने 10 टीमें बनाईं। पुलिस ने कहा कि यहां से लेकर हर रूट पर, जितने स्टेशन पड़ते हैं, जाओ। ताकि पता चले कि कहां उतरा, कहां चढ़ा।
अब, कोशिश चल रही थी।दिन बीतते जा रहे थे।आखिर में पता चला कि उसे वापी स्टेशन पर देखा गया।वापी स्टेशन पर फिर उसे देखा गया कि वह मुंबई बांद्रा जाने वाली ट्रेन में चढ़ रहा था।तो उससे यह हुआ कि वह मुंबई बांद्रा की तरफ गया है।अब पुलिस की टीम मुंबई बांद्रा पहुंची। लेकिन ये सारी तस्वीरें तब देखी जा रही थीं।
जब ऑलरेडी वक्त निकल चुका था, तो इसलिए यही उम्मीद थी कि चलती ट्रेन में पहुंचकर उसे पकड़ लिया जाए। यह मुमकिन नहीं था, लेकिन उसका लोकेशन पता चल रहा था। अब वह वलसाड के उदवाड़ा से वापी और वापी से बांद्रा, मुंबई पहुंच गया था। यह सब सीसीटीवी कैमरे में कैद हुआ। लेकिन इसके आगे वह गायब हो गया।
अब, ना कोई सीसीटीवी कैमरा था और ना वह कातिल किसी और कैमरे में नजर आया। यह पहला मामला था जिसमें एक दिव्यांग सीरियल किलर था।
गुजरात पुलिस की कोशिशें जारी : गुजरात पुलिस ने अब दूसरी कोशिश की। उन्होंने किसी और तरीके से कातिल के बारे में जानकारी जुटाने का प्रयास किया। सबसे पहले, गुजरात की जितनी भी अलग-अलग जेलें थीं, उन सबके सीसीटीवी कैमरे का जो फुटेज था, उसकी तस्वीरें ली गईं।
उसका चेहरा, जो सीसीटीवी कैमरे में कैद हुआ था, उसकी प्रिंटआउट निकाली गई। गुजरात की हर जेल के डेटा बेस से यह पता किया गया कि क्या इस शक्ल का कोई कैदी हाल ही में जेल में था या जेल से रिहा हुआ।
लेकिन अफसोस : पूरे गुजरात की जेलों से उसकी तस्वीर मैच नहीं हुई।अब, यहां भी नाकामी हाथ लगी। दिन बीत रहे थे। पुलिस ने फिर नेशनल डेटा बेस की ओर रुख किया। देशभर के अलग-अलग राज्यों की जेलों के रिकॉर्ड खंगालने का फैसला किया। हर राज्य को उसकी तस्वीर भेजी गई और कहा गया कि देखें, क्या उनके यहां किसी जेल में ऐसा कोई कैदी था।
अलग-अलग राज्यों से: नाकामी ही हाथ लग रही थी। लेकिन तभी, राजस्थान की जोधपुर जेल से एक कामयाबी मिली।जोधपुर जेल में एक कैदी का चेहरा, उस चेहरे से बिल्कुल मेल खा गया।
पता चला कि इसी साल मई में वह वहां से बेल आउट हुआ था। उसके ऊपर मामला था ट्रक चोरी का। जब मैच किया गया, तो जेल से उसके रिकॉर्ड मिले। पता चला कि उसका नाम राहुल जाट था और वह हरियाणा के रोहतक का रहने वाला था।
अब पुलिस रोहतक पहुंची। इस उम्मीद से कि वहां वह मिलेगा। लेकिन, वहां फिर नाउम्मीदी हाथ लगी। मालूम हुआ कि राहुल को उसकी मां और भाई ने बहुत पहले घर से निकाल दिया था। क्योंकि वह एक बैड कैरेक्टर था। वह गुंडागर्दी करता था, चोरी के इल्जाम थे।
कई बार जेल गया था। पड़ोसी ताना मारते थे। तो परिवार ने उसे तिलांजलि दे दी और बेदखल कर दिया। उसके बाद से उसने कभी पलटकर घर नहीं देखा। अब नाम तो मिल गया था, लेकिन पता नहीं मिल रहा था।
फिर भी, पुलिस की कोशिशें जारी रहीं। तमाम तरीकों से उसका पता लगाने की कोशिश की जा रही थी। तमाम मुखबिरों का जाल बिछा दिया गया था। उधर, मुंबई के बांद्रा रेलवे स्टेशन पर भी नजर रखी जा रही थी, जहां आखिरी बार वह कैमरे में कैद हुआ था। वक्त बीत रहा था। 14 नवंबर को उस लड़की की लाश मिली थी।अब 24 नवंबर की तारीख आ गई।
अचानक: वलसाड के पुलिस चीफ अपने दफ्तर में थे। तभी, एक फोन की घंटी बजी। सामने एक मुखबिर था। मुखबिर वह बांद्रा रेलवे स्टेशन पर एक हॉकर का काम करता था। रेलवे स्टेशन पर जो दुकानदार और सामान बेचते हैं, उन्हें हॉकर कहते हैं। उसका फोन आया।
उसने कहा, “साहब, मैंने अभी-अभी उस शख्स को देखा, जिसकी तस्वीर आपने दी थी। वह वैसे ही लंगड़ाकर चल रहा है और बांद्रा से भुज जाने वाली एक ट्रेन में बैठा है।”
इतनी जानकारी काफी थी। लेकिन, जब तक उसने यह खबर दी, ट्रेन बांद्रा से निकल चुकी थी। आरपीएफ को अलर्ट किया गया।
इधर: पुलिस की टीम लगाई गई। एक टीम पहले से वापी में मौजूद थी। अब, वह ट्रेन वापी से होकर गुजर रही थी।
जैसे ही ट्रेन वापी में रुकी: पुलिस सादी वर्दी में ट्रेन के अंदर दाखिल हुई। ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी। एक सीट पर बैठा हुआ कातिल मिल गया। जिसकी तलाश में पिछले 10 दिनों से पुलिस ने 5000 सीसीटीवी फुटेज, देशभर की जेलें, और चार राज्यों की पुलिस की मदद ली थी।
अब वलसाड पुलिस राहुल को साथ लेकर वापस लौटी। पूछताछ शुरू हो चुकी थी। और पुलिस को यही लग रहा है कि चलो एक रेप एंड मर्डर का केस सुलझा दिया। राहुल से पूछताछ शुरू होती है। लेकिन जैसे ही पूछताछ शुरू होती है और राहुल कहानी बताना शुरू करता है,
कहानी खत्म होते-होते पुलिस को एहसास हो चुका था कि उन्होंने जिस शख्स को पकड़ा है, वह एक रेप और मर्डर का अपराधी नहीं है। उन्होंने किसी साधारण कातिल को नहीं पकड़ा, बल्कि एक सीरियल किलर को पकड़ा। एक ऐसा सीरियल किलर जिसने कुल पाँच हत्याएँ कीं और वह भी सिर्फ एक महीने के अंदर।
पुलिस वाले उसकी कहानी सुनकर हैरान रह गए। पहले उसने अपनी पूरी कहानी सुनाई और सबसे पहले उस घटना का ज़िक्र किया, जहाँ से इस केस की शुरुआत हुई, यानी 14 नवंबर। उस दिन वलसाड के उदवाड़ा रेलवे स्टेशन के करीब एक सेकंड ईयर की छात्रा की लाश मिली थी।
उसने बताया कि 14 नवंबर को वह वलसाड आया था। वहाँ उसने कुछ दिन एक होटल में काम किया, फिर नौकरी छोड़ दी और चला गया। कुछ पैसे बकाए थे, जिन्हें लेने वह वापस आया। पैसे लेकर वह उदवाड़ा स्टेशन पहुँचा। उसे मुंबई जाने के लिए ट्रेन पकड़नी थी। ट्रेन आने में वक्त था, इसलिए वह प्लेटफ़ॉर्म के आसपास घूमने लगा।
तभी उसने देखा कि एक लड़की लौट रही थी। वह ट्यूशन पूरी करके लौट रही थी। शाम का वक्त था, और प्लेटफ़ॉर्म पर बिल्कुल सन्नाटा था। उसने लड़की का पीछा करना शुरू किया। लगभग 100 मीटर तक पीछा करने के बाद उसने रेलवे ट्रैक के पास एक सुनसान जगह देखी, जहाँ पेड़-पौधे थे और कोई इंसान आसपास नहीं था। मौका देखकर उसने लड़की को दबोच लिया।
उसके मुँह पर हाथ रखा, उसे धमकाया और फिर उसके साथ जबरदस्ती की। इसके बाद उसने उसका गला घोंट दिया। हत्या करने के बाद उसे प्यास लगी। वह अपना स्वेटशर्ट और बैग वहीं छोड़कर प्लेटफ़ॉर्म पर वापस गया। वहाँ उसने जूस और दूध खरीदा। इसके बाद, वह वापस आया और इरादा किया कि वह उस मृत लड़की के शव के साथ फिर से जबरदस्ती करेगा।
लेकिन जब वह वहाँ पहुँचा, तो उसने देखा कि भीड़ इकट्ठा हो गई थी। लड़की के घरवाले उसे ढूँढने निकले थे। रास्ता पता होने के कारण वे वहाँ पहुँच गए थे। पुलिस को सूचना दी गई, और वह भीड़ देखकर राहुल समझ गया कि उसका अपराध उजागर हो चुका है। वह वहाँ से भाग निकला।
अन्य घटनाएँ: इसके बाद उसने हावड़ा, आंध्र प्रदेश, सिकंदराबाद, और पुणे-कन्याकुमारी ट्रेन में इसी तरह की घटनाएँ कीं। उसने अधिकतर हत्याएँ भारतीय रेल की दिव्यांग बोगियों में कीं। पुलिस ने जब उससे इसका कारण पूछा, तो उसने बताया कि वह हरियाणा के रोहतक का रहने वाला है। राहुल ने यह सब अपनी कहानी में बताया, जो पुलिस के लिए बहुत चौंकाने वाला था।
रोहतक जिले का ,जब यह थोड़ा सा बड़ा हुआ तो इसके फादर की डेथ हो गई।
उसके बाद बचपन में इसे पोलियो हो गया था। उस पोलियो की वजह से बायां पैर थोड़ा खराब हो गया था और यह लंगड़ाकर चलता था। स्कूल में दाखिला मिला। स्कूल में बच्चे इसे इसके इस लंगड़ेपन की वजह से चिढ़ाते थे और उसका मजाक उड़ाते थे।
धीरे-धीरे यह बात उसे बहुत बुरी लगने लगी। फिर कैसे भी करके यह पढ़ता-लिखता गया। इसका एक सपना था कि यह बड़ा होकर ट्रक चलाएगा। ट्रक को लेकर यह बहुत उत्साहित रहता था। ट्रक देखकर इसे खुशी होती थी। लेकिन, चूंकि इसे पोलियो हो चुका था और एक पैर खराब था, किसी ने भी इसे ट्रक ड्राइवर की नौकरी नहीं दी।
किसी ने इसे ट्रक के करीब भी नहीं आने दिया। यह बात इसे बहुत चुभ गई। तब उसने पहला जुर्म किया। उसने कहा कि जिस ट्रक को मैं चलाना चाहता हूं, यह मुझे चलाने नहीं दे रहे। उसने ट्रक की ही चोरी करनी शुरू कर दी। उसने 12 ट्रक अलग-अलग जगहों से चुराए—दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, और उत्तर प्रदेश में। वह ट्रक चुराता, उसमें लदा माल बेच देता, और फिर ट्रक को कहीं ले जाकर छोड़ देता।
इसी चोरी के चक्कर में वह कई बार पकड़ा गया। जेल गया। लेकिन जमानत पर बाहर आ जाता। जेल आना और जाना उसका लगातार चलता रहा। आखिरी बार वह जोधपुर की जेल में बंद था। ट्रक चोरी के मामले में और इसी साल मई में उसे बेल मिल गई। घरवालों ने वैसे ही उसे निकाल दिया था।
जब वह बाहर आया, तो उसे एहसास हुआ कि वह इतनी बार जेल जा चुका था कि वह अंदर कई कैदियों से मिल चुका था। वह अब एक पेशेवर अपराधी बन चुका था। बाहर आने के बाद भी उसे बचपन की बातें याद आती रहीं। वह सोचता रहता था कि लोग उसकी दिव्यांगता पर हंसते होंगे।
यह बात उसके अंदर इतनी गहराई तक उतर चुकी थी कि वह गुस्से से भर गया। इसके बाद उसने पहली बार देखा कि दिव्यांग कोटे के लिए रिजर्व बोगियों में अक्सर भीड़ नहि होती है। चूंकि वह खुद भी एक दिव्यांग था, वह आसानी से उन्हीं बोगियों में चढ़ जाता।
पहली घटना 20 अक्टूबर को हुई। उसने अपनी सारी कुंठा और गुस्सा एक महिला पर उतारा। उसने उसके साथ दुष्कर्म किया और उसे मार डाला। वह वहाँ से निकल गया। जब उसे महसूस हुआ कि उसे पकड़ा नहीं गया, तो उसने इसे दोहराना शुरू कर दिया। वह एक राज्य से दूसरे राज्य जाकर अपराध करता।
14 नवंबर को उसने वलसाड, गुजरात में अपराध किया। यह पहली बार था जब उसने रेलवे ट्रैक के बाहर यह अपराध किया। इसी वजह से वह पकड़ा गया, क्योंकि उसका बैग और स्वेटशर्ट वही रह गए थे। अगर वह यह सामान नहीं छोड़ता, तो शायद पकड़ा भी नहीं जाता।
चार हत्या और दुष्कर्म उसने ट्रेन की बोगियों में किए, जो दिव्यांगों के लिए आरक्षित थीं। अलग-अलग पुलिस टीम अपने तरीके से मामले की जांच कर रही थी। लेकिन जब उसने पहली बार ट्रेन के बाहर यह अपराध किया, तो वह पकड़ में आ गया।
24 नवंबर को वह पकड़ा गया। अब पुलिस उससे पूछताछ कर रही है। पुलिस यह समझने की कोशिश कर रही है कि एक दिव्यांग व्यक्ति, जो खुद भी विकलांग है, अपनी जैसी महिलाओं के साथ दुष्कर्म और हत्या क्यों कर रहा था।
कहानी के अंत में
यह बात चौंकाने वाली है कि चलती ट्रेन में भी महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं। अगर यह वलसाड वाला अपराध न होता, तो शायद यह सीरियल किलर और लोगों को अपना शिकार बना लेता।